आज हम आपको इस पोस्ट में राम जी से जुडी बातें बताएँगे।पहले तो आप अपना बैलेन्स बनाए रखिए,फिर भले राम जी की तरह,कृष्ण जी की तरह युद्ध करना पड़े तो कीजिए।लेकिन हृदय में हमेशा यह रखिए “काज हमार हित तासु” रामजी कहते हैं अंगद को जाओ वत्स कार्य तो हमारा हो लेकिन हित रावण का हो।देखिए रामजी के हृदय में कितनी उदारता है।काज हमार हित तासु,हमारा यह कार्य हो जाए लेकिन, हित उसका हो।आप जिसको समझाते हैं,डाँटते हैं, सुधारते हैं आप उसका हित करते हैं या फिर डाँटकर उसका अहित कर रहे हैं,ये ज़रा ध्यान रखना चाहिए। यह रामचंद्र जी का कहना है।तो बड़ों से मैत्री,छोटों से करुणा भरा हृदय।रामजी जानते हैं,की रावण बिचर छोटी दुनिया में जीता है।देखकर,सूंघकर,भोगकर सुखी होना चाहता है।यह बहुत छोटा आदमी है।जिससे देखा जाता है,सूँघा जाता है,भोगा जाता है उस आत्म सुख में रावण की गति नहीं है।रावण कर्म की प्रधानता में उलझा हुआ है और रामजी कर्म जिससे किया जाता है उस रोम रोम में रमने वाले चैतन्य सुख में सरबोर होने वाले महा-अवतारी पुरुष है।सीता जी, श्री राम जी को किस नज़रिए से देखती है? हनुमान जी राम जी को किस नज़रिए से देखते हैं?केवल वो दास्य भाव से देखते हैं।जिस भाव से प्रभु को देखो,उसी भाव से आप पुष्ट हो जाते हैं।दास्य भाव से देखते हैं तभी भी परमात्मा तो पूर्ण हैं।आपको पूर्णता का प्रसाद मिलेगा।अर्जुन श्रीकृष्ण को सखा भाव से देखते हैं,या बाल मित्र श्री राम को सखा भाव से देखते तभी भी उनको वही सुख मिलेगा। कौशल्या जी राम जी को वात्सल्य भाव से देखती हैं,वशिष्ट जी वात्सल्य भाव से देखते हैं,शिष्य भाव से देखते हैं।भगवान तो पूर्ण हैं, आपका चित्य जिस भाव से उसका चिंतन करता है,बस वो भगवान तो भगवान हैं।
सीता जी का करुणामयी हृदय
एक बार सीता जी ने राम जी को कहा मुझे अयोध्या की बाज़ार घूमना है।राम जी मंद-मंद मुसकाए।तनिक शांत हो गए,अपने राम स्वभाव में।आप भी तनिक शांत हो जाइए अपने राम स्वभाव में।रामजी ने सीता जी पर थोड़ा भी क्रोध नहि किया।रामजी मुस्कुराते हुए मन ही मन सोचने लगे की,इससे भी कुछ भला ही होना है।राम जी बोले अच्छा सीते,आज अयोध्या देखते है चलो।एक ऐसी जगह पर रामजी, महल के एक ऐसे कोने पर रामजी रत्नजडित आसन पर सीता सहित बैठे और दिखाया की देखो ये राजमार्ग है,यह फलाना रास्ता है,ये बाज़ार है,यह ऐसा है।सीता जी देखती रहीं उस ज़माने में यह जो दूरबीन अपनी है उससे भी कुछ और सुंदर सुहावने ऐसे ही कोई यन्त्र था जिसे लगाकर सीता जी देख रहीं थी की बाज़ार में एक महिला है जो काफ़ी ग़रीब दिख रही है।कपड़े बहुत लाचारी की ख़बर दे रहे हैं।गोद में एक छोटा बच्चा है।सीता का हृदय पसीज गया।दासी को बुलाकर बोली की जाओ ,और उस महिला को ले आओ।रामजी देखते रहें और रामजी अंदर से प्रसन्न होते रहें की,सीता का वात्सल्य मातृ हृदय कितना सुंदर है।आदर से वो महिला को दासी से महल में लाया। राजा रामजी के महल में उस महिला को लाया गया।सीता जी ने आसान बिछाया और उससे बोली की सखी बैठो।वो दरिद्र दुखिया माई सीता जी के द्वारा सुनती है सखी बैठ,और बहुत ही भावुक हो जाती है।उसके नेत्रों से गंगा जमुना बहने लगती है।महिला बोलती है माता आपकी जय हो।वो महिला सोच भी नहीं सकती थी की मुझ ग़रीब को यह जगत जननी बहन अथवा सखी कहकर पुकार रही है।ये तो बड़े का बड़प्पन है।वात्सल्य से,नम्रता से,अपनेपन से बात करना यही तो बड़प्पन है।सीता जी बोली बहन,तुम्हारे ऐसे वस्त्र,ऐसा भूखा प्यासा सा शरीर पतला सा,अगर मैं सुनने की अधिकारी हूँ तो तुम कृपा करके बताओ। वो माई तो फूट-फूटकर कर रोई जा रही थी।सारा शोक-दुःख तो चला गया बस आँखों से अश्रु बह रहे थे।उस महिला को विश्वास नहीं हो रहा था की,अयोध्या पति की पत्नी सीता माता,के समक्ष ऐसी सुंदर वाणी सुन रही हूँ।उसका शोक दुःख तो चला गया।प्रेम आँसुओं से भर्ती हुई कहती है की,हे माँ,हे सीते,जगतजननी माँ! मैं आज तक यही सोचती थी की मेरा जगत में कोई नहीं है।मेरा पति तीर्थ करने गया,कई वर्ष हो गए।लोगों ने बताया की कहीं पैर फिसल गया उनका हिमालय में,जब मुझे यह पता चला तो मैं आ गयी अपने बूढ़े माँ-बाप के पास वो भी चल बसे।अब धरती पर मेरा कोई नहीं है।मैं हर समय अपने आप को कोसती रहती थी।दुःख के दिन गुज़ारती थी अकेले।माँ मैं अपने बच्चे का पेट और अपने पापी पेट को भरने के लिए कहीं माँग लेती थी और माँग के खाती थी।बहुत सकुचाकर माँगती थी माँ मैं घर-घर जाकर खाना।कहीं भी पड़ी रहती थी माँ मैं।आप मुझसे बोल रही हो अपने दुःख का कारण बताओ अगर मैं सुनने के योग्य हूँ तो मुझे बताने की कृपा करो।हे सीते! हे मेरी सखी सीते! एक कंगली रूपी माई को सीता जी को सखी कहने में कितनी प्रेमाभक्ति जगी होगी।इस कथा को हम केवल सुन और देख सकते हैं।असली में हुआ होगा तो कितना सुंदर दृश्य यह रहा होगा।रामजी का हृदय कितना भर आया होगा।सीता जी का हृदय भर गया।रामजी की तरफ़ वे देखती हैं तो रामजी की आँखें भी छलक आयी करुणा से।सीता जी ने चेहरे का संकेत भा लिया।अपने सारे गहने सीता जी उस महिला को पहना देती हैं।अपने सुशोभित वस्त्र भी पहना देती हैं।सीता जी उस महिला से कहती हैं, की बहन जाओं लख़न भैया से कहना की सीता की आज्ञा है,1 लाख स्वर्ण मुद्रा तुम्हारी सेवा में लगा दें।तुम जहाँ रहना चाहो,जहाँ मकान लेना चाहो,जो भी ख़रीदना चाहो,वो कर सको।1 लाख सोने की मोहरे मिल गयी और जीवन व्यापन करने वाली उस ब्राह्मणी को संतुष्ट करके,सीता जी रुकी नहीं।सीता जी ने रामजी का संकेत पाया और आदेश जारी कर दिया की जो भी राज्य-काज्य के करता हैं,उस सभी को संदेश जारी किया जाता है,की कोई भी वस्त्र और अलंकार विहीन महिला,अथवा सादा जीवन,अथवा दरिद्र जीवन वाला अयोध्या के किसी भी क्षेत्र में अगर होगा तो वहाँ का राज्य करता दंडी माना जाएगा।राज्य कोष से ग़रीबों की सेवा नहीं हुई तो धिक्कार है उस राज्य कोष को।धिक्कार है उन अशर्फ़ियों को और धिक्कार है परदेश की स्विटज़ेरलैंड की बैंको के ख़ज़ाने को अगर ग़रीब बिचारे लाचार हैं,मोहताज हैं पानी की एक बूँद-बूँद के लिए तरस रहे हैं।किसी भी तरह प्रजा का शोषण नहीं होना चाहिए।ऐसा श्री रामजी का कहना था।