लक्ष्मण जी एक ऐसे महापुरुष थे जो की केवल भगवान राम जी की परछाईं बनकर हर वक़्त उनके साथ रहना चाहते थे।दुनिया में हर आदमी की परछाईं काली है,एक राम ही ऐसे है जो पृथ्वी पर आएँ जिनकी उजली परछाईं श्री लक्ष्मण जी को कहते हैं।लक्ष्मण जी सदैव भगवान राम के आदर्शों पर चलते थे।रामजी को पिता समान और माता सीता को माँ मानते थे।प्रभु श्रीराम और माता सीता भी लक्ष्मण जी को अपने पुत्र के समान मानते थे।लक्ष्मण जी हर समय अपने भ्राता रामजी और माता सीता की सेवा में तत्पर रहते थे।जब राम जी को 14 वर्षों का वनवास हुआ तब लक्ष्मण जी ने कुछ भी नहीं सोचा और भैया राम के साथ जाने के लिए तैयार हो गए।इस प्रकार भाइयों में प्रेम सिर्फ़ रामजी और लक्ष्मण जी का ही हो सकता है।
लक्ष्मण जी की माँ सुमित्रा का हृदय बड़ा ही कोमल था।

जब रामजी वनवास जा रहे थे तो लक्ष्मण जी माँ सुमित्रा से पूछने गए कि माँ मई अयोध्या में रुकु या भैया के साथ जंगल में जाऊँ? सुमित्रा माँ ने बहुत ही बढ़िया उत्तर दिया की बेटा जब राम और सिया अयोध्या छोड़के जा रहे हैं तो, तुम्हारा अयोध्या में क्या काम है।माता सुमित्रा का कहना था की जहाँ रामजी हैं वही अयोध्या है।माता सुमित्रा ने कितने प्यारे पुत्र को जन्म दिया था जो सिर्फ़ रामजी के चरणों में ही तत्पर रहना चाहते हैं।भाइयों में ऐसा प्रेम आज कल कहाँ देखने को मिलता है
उर्मिला और लक्ष्मण जी का चित्रकूट में संवाद।
एक चित्रकूट का दृश्य हम आपको वर्णन करके बताना चाहते हैं।जहाँ पहली बार उर्मिला,मांडवि और शुतकीर्ति अपनी सास के साथ रामजी को मनाने आए थे।सीता जी तो बड़ी बहन थी और कहा जाता है की बड़ी बहने छोटी भेनों का हित समझती हैं।सीता जी समझ गयी थी की उर्मिला आइ है लेकिन, संकोच वश अपने पति लक्ष्मण से मिल भी नहीं रही है।लक्ष्मण भैया तो उससे भी ज़्यादा संकोची है,वो तो मिलेंगे भी नहीं उर्मिला से।सीता जी ने बुलाया लक्ष्मण जी को और कहा मेरी कुटिया में फूलों की डाली रखी है वो ज़रा ले आओ,मुझे मला बनानी है देवताओं के लिए।सीता जी जानती थी की उनकी कुटिया में उर्मिला बैठी हैं।लेकिन इसी बहाने दोनो एक दूसरे से मिल पाए इसलिए सीता जी ने वो फूलों की डाली लाने भेजा।उत्साह में भरे लक्ष्मण जी ने सोचा भाभी का काम करने जा रहा हूँ।बहुत ही ख़ुशी के साथ कुटिया की ओर चल पड़े।जैसे ही उन्होंने झोपड़ी का दरवाज़ा खोला और अंदर गए तो देखा की उर्मिला बैठी हुई है।लक्ष्मण जी स्तब्ध रह गए और सोचने लगे की मैं जिससे बिना अनुमति लिए चला आया था,जिससे बिना बात किए चला आया था उनसे कैसे नज़रें मिलाऊँ।जिनके साथ फेरों के समय प्रण लिया था की जिसका साथ नहीं छोड़ूँगा लेकिन भैया राम के अनुराग में जिसे छोड़के चले आए,वो उर्मिला।उर्मिला जिसने अपनी बड़ी बहन सीता को आदर्श माना और इस बात को स्वीकार कर लिया की कोई बात नहीं चले गए तो कोई बात नहीं।उर्मिला आके खड़ी हुई और मुस्कुरायी और मुस्कुराते हुए बोली,मेरे उपवन के हरिन,मेरे बाग़ के हिरन आज वनचारि।और अगली पंक्ति में उर्मिला ने कहा “मेरे उपवन के हिरन आज वनचारि मैं बाँध ना लूँगी तुम्हें तजो भय भारी” यानी की मैं तो बस देखने आयी हूँ की,मेरे बाग़ के हिरन कैसे हैं,मैं आपको बाँध ना लूँगी आप यह भय तज दीजिए।उर्मिला जी लक्ष्मण जी का मन बड़ा कर रही है।लक्ष्मण जी ने कुछ ऐसा कहा जो कि बहुत अद्भुत था।लक्ष्मण जी ने कहा की,तुम मेरी केवल पत्नी नहीं हो,तुम भाभी की बहना हो।तुम तो साक्षात जगतजननी माता सीता की छोटी बहन हो,उनके योग्य है भगवान राम।त्रिलोक का स्वामी तो ऐसी ही पत्नी के साथ वरता।किंतु,मुझे पता नहीं की मैं इतना योग्य हूँ भी या नहीं की जगत जननी माता सीता की छोटी बहन का पति बन सकूँ।मैं उस योग्य बनने के लिए जंगल में आया हूँ,ताकि मैं तुम्हारे योग्य बन सकूँ।मुझे थोड़ी तपस्या करने दो उर्मिला मुझे कुछ अपने लायक़ बनने दो,ऐसा लक्ष्मण जी ने कहा।तुम पहले मेरी पत्नी नहीं हो।तुम तो पहले माता सीता की बहन हो।मुझे इस लायक़ तो बनने दो की, सीता माता किसी से मेरा परिचय कराए और कहें की ये मेरी छोटी बहन का पति है।