आज हम आपको इस पोस्ट द्वारा प्रभु श्रीराम जी और उनके भाई भरत जी के अद्भुत प्रेम के बारे में बताएँगे।इन दोनों भाइयों का प्रेम एक ऐसा प्रेम था जिसमें त्याग और समर्पण की कोई सीमा ही नहीं थी।आज हम रामायण का एक बहुत ही छोटा सा प्रसंग इस लेख के द्वारा आपको बताना चाहेंगे।आइए आज पढ़ते है एक ऐसी कथा जहाँ आँसुओं में भीगी एक ऐसी रात थी जब सूर्य-वंशी रामचंद्र जी द्वारा एक ऐसा निर्णय लिया गया जो पूरी पृथ्वी पर सात्विकता के अक्षय उजाले का माध्यम बन गया।रामजी अपने सभी भाइयों से बहुत प्रेम करते थे और इसी तरह उनके भाई भी श्रीराम जी को बहुत प्रेम करते थे तथा सम्मान देते थे।आज हम इस लेख के द्वारा आपको बताएँगे की कैसे भरत जी श्रीराम जी को वापस अयोध्या लेने गए थे लेकिन,प्रभु श्रीराम नहीं लौटे।
भरत का चरित्र-चित्रण

राम के भाई भरत, जिनके ऊपर सबसे कम चर्चा होती है।सबसे कम भरत जी पर लिखा और बोला गया है।लक्ष्मण जी प्रभु श्रीराम जी के साथ 24 घंटा रहते है।और शत्रुघ्न पर भी कम बोला गया है,लेकिन भरत जी पर सबसे कम बातें सुनने या पढ़ने को मिलती हैं।सरस्वती जी ने देवताओं के कहने पर मंथरा की बुद्धि फेर दी, साथ ही देवताओं के कहने पर कैकेयी की भी बुद्धि फेर दी।लेकिन जब भरत जी ने कहा की मैं भैया को वापस लेने जा रहा हूँ तो देवताओं ने फिरसे सरस्वती जी से कहा की भरत जी की बुद्धि फेर दो क्योंकि प्रभु श्रीराम तो बड़े ही दयालु हैं।फिर सरस्वती जी ने कहा की,मैं इस संसार में किसिकी भी बुद्धि भ्रष्ट कर सकती हूँ लेकिन भरत जी की बिलकुल भी नहीं।भरत जी जब भैया को ढूँढते हुए निकले, तो वे अकेले नहीं गए थे भरत जी पूरे कुटुंब को साथ लेकर गए थे। राजा जनकजी भी उनके साथ गए थे। भरत जी ने सोचा की शायद भैया मेरी नहीं तो हो सकता है की माता सुमित्रा की या माँ कौशल्या या फिर राजा जनकजी के ही कहने पर लौट आए अयोध्या।
श्रीराम जी भरत जी से कितना प्रेम करते थे?

भरत जी जब राम जी को खोजने के लिए निकले थे तब रास्ते में वे वही रुके जहाँ प्रभु श्रीराम जी रुके थे। भरतद्वाज के आश्रम में रुके थे प्रभु रामजी और वही भरत जी भी रुके थे।सुबह चलते समय भरत जी के मन में काफ़ी संकोच आया तो भरतद्वाज जी ने पूछा हे राजन! आपके चेहरे पर यह संकोच कैसा नज़र आ रहा है।भरत जी ने भरतद्वाज जी से पूछा की भैया मझे माफ़ तो कर देंगे ना? मैंने इतनी बड़ी ग़लती की। हालाँकि भरत जी ने कोई ग़लती नहीं की थी फिर भी वे पश्चाताप में थे। भरत जी ने बोला की माँ ने इतनी बड़ी ग़लती की, क्या इसके लिए भैया मझे क्षमा कर पाएँगे? भरतद्वाज जी ने कहा हे राजन! मझे पता नहीं है की प्रभु श्री राम जी आपको कितना प्रेम करते हैं या नहीं। लेकिन जब सुबह वे यहाँ से जा रहा थे,और गंगा पर करने के लिए उन्होंने पुरोहित को बुलाकर स्वस्तिवाचन का मंत्र किया तो बड़े ही ख़ुश थे की मई वनवास पर जा रहा हूँ।प्रभु श्रीराम जी के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट थी,लेकिन पुरोहित ने हाथ में जल दिया और जैसे ही पुरोहित के मंत्रो के बीच में भरत जी का नाम सुना और उंबके हाथ से वो जल ज़मीन पर गिर गया और वे ज़मीन पर गिर गए और हाए भरत! हाए भरत! कहके पुकारने लगे।इतना प्रेम आपको आपके भैया करते है भरत जी,ऐसा भरद्वाज जी ने कहा।
श्रीराम जी की नीति।
राम करुणा से भरे हुए हैं इसलिए वे करुणानिधि कहलाते हैं।इस देश का पहला लोकतंत्र का मानक श्रीराम जी ने बनाया था।जिनका कहना था की जनता ही सत्य नहीं होती है,नीति सत्य होती है। हम आपको इसका एक उदाहरण देना चाहेंगे। जब राम जी वनवास गए, हर कोई चाहता था की वे लौट आएँ।अगर रामजी उसी दिन लौट आते तो सब ख़ुश हो जाते।लेकिन रामजी ने जनता का सम्मान नहीं किया बल्कि नीति का सम्मान किया।
श्रीराम जी ने वनदेवी को क्या आज्ञा दी?
जब प्रभु श्रीराम जी पहली बार चित्रकूट पहुँचे तो वनदेवी उनका स्वागत करने के लिए आयी।वनदेवी ने पूछा की आप मेरे यहाँ विश्राम करने आए हैं प्रभु,मैं आपके लिए क्या कर सकती हूँ?प्रभु श्री राम जी ने उत्तर दिया की हे वनदेवी बाक़ी सब चीज़ों का इंतज़ाम तो हम कर लेंगे लेकिन बस आप इतना कीजिएगा की, जिस रास्ते से मैं आया हूँ उसके काटें हटा दीजिएगा।वनदेवी ने कहा की प्रभु लेकिन आप तो आ चुके हैं,अब काटें हटा दूँ या फिर ना हटाऊँ इससे क्या होगा प्रभु?प्रभु श्रीराम जी ने जो उत्तर दिया वो सुनके आपकी आँखें नाम हो जाएँगी।रामजी ने मुझे तो कोई दिक्कत नहीं है की मुझे काटें लग गए पर मई जानता हूँ कि मुझे ढूँढते-ढूँढते मेरा छोटा भाई भरत इसी रास्ते से आएगा,उसको काटें नहीं चुभने चाहिए।इसलिए काटें हटा दीजिए।फिर वनदेवी के माँ में एक जिज्ञासा हुई।वनदेवी ने कहा की आपने जो कहा वो मैं कर दूँगी। मेरी जिज्ञासा यह है की,क्या अयोध्या का राजा,अयोध्या की चतुरंगिणी सेनाओं का सेनापति, दशरथ का पुत्र ,राम जी का छोटा भाई भरत इतना नाज़ुक है,की रास्ते में चलेगा तो उसको काटें चुभ जाएँगे।रामजी ने कहा नहीं वो तो वज्र के सामान है।उसकी छाती से टूटकर तो इंद्र का वज्र भी टूट जाता है।ये काटें उसे परेशान नहि करेंगे।वनदेवी ने कहा की फिर क्यों हटा दूँ? फिर श्रीराम जी बोले की परेशानी यह है की अगर एक काटा भी मेरे भरत भाई को चुभा तो उसका दिल यह सोचकर ही टूट जाएगा की, मेरे कारण मेरे भैया को इन काटों को झेलना पड़ा है।
भरत जी और रामजी का मिलन

बिना चप्पलों के भरत जी चले थे,और जब चले तो “भई मृदु भूमि सकुचि माँ मनहिं” अर्थात, भूमी भी संकोच से भर गयी।इसका मतलब यह है की भगवान स्वयं कष्ट सह सकते हैं पर जो उन्हें प्रेम करता है, वो कष्ट सहे ये उन्हें स्वीकार नहीं।जब भरत जी प्रभु श्रीराम जी तक पहुँचे तब सभी की आँखों से वो प्रेम के अश्रू बह रहे थे।सब एक दूसरे से मिले फिर प्रभि रामजी ने भरत जी ने पूछा की भाई यहाँ क्यों आए हो?क्या चाहिए?तब भरत ने स्वयं को दोष देते हुए कहा की, हे प्रभु मुझे सब कुछ तो मिल गया। पिता जी का मेरे वजह से स्वर्गवास हो गया। आपको मेरे वजह से वनवास हो गया। सोने की आभूषण पहनने वाली मेरी माँ समान भाभी को जंगल में रहना पड़ रहा हैं मेरे वजह से।सबसे सराहनीय बात इस कथा की यह है की भरत जी की कोई ग़लती ना होते हुए भी वे प्रायश्चित करने के लिए माफ़ी माँगने और प्रभु को वापस अयोध्या ले जाने आए थे।यहीं से रामजी का लोकतंत्र प्रारम्भ होता है।प्रभु श्री राम जी उस रात 2 काम करते हैं।भरत जी को लोकतंत्र का मंत्र देते हैं।और कैकयी को स्वीकार करके क्षमा का मंत्र देते हैं।रामजी जानते थे कि अगर भरत जी लौट भी जाएँगे तो जीवन भर माँ से बात नहीं करेंगे। पूरी अयोध्या इनके नाम पर नाराज़ रहेगी। इसलिए जब तीनों माताएँ पहुँचती हैं तो सबसे प्रथम रामजी ने माँ कैकेयी को प्रणाम किया।क्योंकि वे जानते हैं कि कैकेयी माँ की मनोदशा कैसी है।कैकेयी माँ रामजी से ये विनती करती हैं की तुम मझे कुछ भी ना देना लेकिन बस यही देना की मैं जीवन भर भरत की माँ बनी रहूँ।फिर रामजी ने कहा, की हे माँ आपका राम तो सब जानता है।और माँ मैं तो बस इतना ही कहना चाहूँगा की आप जैसी दूजी स्त्री इस संसार में नहीं हो सकती क्योंकि आप एक ऐसी जननी हैं जिन्होंने भरत जैसे भाई को अपनी कोख से जन्म दिया।”सौ बार धन्य वह एक लाल की माई”।
कौशल्या से लेकर जनक तक सबका बहुमत रामजी को अयोध्या लौटाने का था, लेकिन रामजी नीति के साथ रहे।भरत,लक्ष्मण जैसा भाई पाना,मेरे लिए सौभाग्य की बात है।ऐसा रामजी ने कहा।
FAQ:
Q: श्रीराम जी की कितनी माताएँ थी?
Ans. प्रभु श्रीराम जी की 3 माताएँ थी, कौशल्या,सुमित्रा एवं कैकेयी।
Q: भरत जी की पत्नी का नाम क्या था?
Ans. भरत जी की पत्नी का माँ मांडवी था।
Q: भरत जी की माता का नाम क्या था?
Ans. भरत जी की माता का नाम कैकेयी था।
Q: प्रभु श्रीराम जी के भाइयों के क्या नाम थे?
Ans. श्रीराम जी के भाइयों के नाम थे लक्ष्मण,भरत,और शत्रुघ्न।